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डर / श्याम महर्षि
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म्हनैं अबै
डर नीं लागै
नीं चाइजै
लूठां रो सनेपौ म्हनै
अर उण रौ अणुतौ हेत,
छोटी-मोटी अबखायां सूं लड़नौ
आयग्यो है म्हनै
अबै विपति सूं
लड़नौ अर उणनै
मेटणै री अटकल
जाणग्यो हूं म्हैं
म्हारै मांय कोई
तपतो सूरज,
उगणै खातर
उजास दांई
बारै निकळनै नै हिचके
म्हारै मांय बधते गरमास सूं
अबै म्हारो डील धूजैं नीं।