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एक हरी कविता / मणिका दास
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मेरे खाली सीने में उगी है
एक हरी कविता
चुपके से बढ़ती है
उसकी जड़ें
सुबह-शाम-रात
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार