भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबेरे की आग / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 14 जनवरी 2011 का अवतरण ("सबेरे की आग / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
सूरज के साथ में
सबेरे की आग है
पूरब में पैदा हुआ जीवन का राग है
पंखों के उड़ने का अंबर में नाद है
कोयल की बोली से झरता प्रमाद है
किरनों के मेले में गाता प्रकाश है
बीना-सा बजता हुआ
मौसम का
श्वास है।
रचनाकाल: ०८-१०-१९७५