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म्हूं थां री बांसरी री / मंगत बादल

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म्हूं थां री बांसरी री
मुड र पाछी नीं आवणै सारु
बिछडी एक तान
लगोलग दुर जांवती
रैगी अणसुणी ।
जुगां-जुंगातरां सूं भटकती
आंख्यां में तास आस हियै में
डार सूं अळगी तिरसा मरती मिरगी ।
अधंरा पर अटक्योडी एक गूंगी प्रार्थना
गुमग्या जिण रा सबद बा फरियाद ।
एक निरव कंवळी राग
नीं समझ सक्यो जिण नै कोई
कंठां भीतर घुट-घुट रैगी जिकी
मुधरी-मुधरी कसक लियां ।
बादळा रीं छियां सो ठंडो
हिवडै में पळतो
सीप में जियां मोती
भोलो उज्जवळ उरणियै सरीखो
अणचीन्हो अनुराग
संस्कारां री परतां तळै
सूतो हो कठै ई सागर री गैराई में ।
थां रै माथै रै मुकट री मोरप-पांख
उतार फेंक दी जिण नै
आप री यादां सूं बारै
आज भी वा
आंसुड़ां रै मोत्यां सूं चौक लीप
आस रो दिवलो जगायां
सजायां आस रो थाळ
जिनगाणी रै दुआर
खडी उडीकै थां नै
वधारणै तांई
छेकडली सांस री सींव पर ।