भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:27, 14 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम महर्षि |संग्रह=अड़वो / श्याम महर्षि }} [[Category:…)
दिन तो बियां
दिन ही हुवै
पण मिनख नै
बै दिन न्यारा न्यारा लखावै
कदैई उण दीठ मांय
हुई जावै
भीखा रा दिन
तो कदैई बो
इतरावै दिनां नै आछा मान,
दिन दिन ई हुवै
पण
दिनां दिनां रो फेर
दिन उणनै बणावै
दिन मिटावै उणनै,
दिनां नै धक्को दैंवतो
कै दिनां ने तोड़तौ बो
आपरी लोई राख नीं सकै,
दिन गिरह रै मिथक नैं
तोड़तो मोट्यार ई
बणाय सकै आपरो
न्यारो निरवाळौ इतियास
अर हुय सकै उण रै मन मांय
जुग बोध रो उजास।