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अंधारपख / श्याम महर्षि
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अंधारपख रै
सियाळै री लाम्बी रात
भिजैड़ी कांबळ दांई
म्हनैं घणी भारी लागै
अर म्हारै अन्तस मांय
जगावै अमूझ,
काळूंस लदपद
इण रात मांय
सुपना री मोर पांख
पगल्या करै
अर उडीकै
सूरज रै घोड़ा नै
बिछाऊ पलक पांवड़ा
सूरज पैली किरणा नैं
इण भरोसै
बिताऊं हूं सारी रात
अर हिचकू
इण काळी सुरंग सूं निकळ नैं !