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कुमकुम के छींटे / मालचंद तिवाड़ी

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घर में आहूत
प्रत्येक मांगलिक अवसर पर
अक्षर-विहीन मेरी माँ
लिखवाया करती मुँह से बोल
मेरे हाथों से पोस्टकार्ड
निमन्त्रित करने दूरस्थ रिश्तेदारों को
लिख लिये जाने पर पोस्टकार्ड
घोला करती कुमकुम
छींटा करती उसे एक-एक निमन्त्रण पर
डुबोती हुई अपनी कनिष्ठा
कटोरी भर रतन-तलाई में
तुम्हारे लिये याद करता हूँ
वही माँ की कनिष्ठा अंगुली
वही सुगंधित कुमकुम
अर्पित करने को फिर से तुम्हें
सोचता हूँ
मेरे जीवन के पोस्टकार्ड पर
कुमकुम के छींटे ही तो है तुम्हारा प्यार
उन्हें अर्थ देने सिवाय
और क्या है कविता !

अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा