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उसकी स्मृतियों में / नंद भारद्वाज

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जिस वक्त में यहाँ होता हूं
आपकी आँख में
कहीं और भी तो जी रहा होता हूं
किसी की स्मृतियों में शेष
शायद वहीं से आती है मुझमें ऊर्जा
इस थका देने वाली जीवर्नयात्रा में
फिर से नया उल्लार्स
एक सघन आवेग की तरह
आती है वह मेरे उलझे हुए संसार में
और सुगंध की तरह
समा जाती है समय की संधियों में मौन
मुझे राग और रिश्तों के नये आशय समझाती हुई।

उसकी अगुवाई में तैरते हैं अनगिनत सपने
सुनहरी कल्पनाओं का अटूट एक सिलसिला
वह आती है इस रूखे संसार में
फूलों से लदी घाटियों की स्मृतियों के साथ
और बरसाती नदी की तरह फैल जाती है
समूचे ताल र्में
उसी की निश्छल हँसी में चमकते हैं
चाँद और सितारे पूरी रात
सवेरे रेतीले धोरों पर उगते सूर्य का आलोक
वह विचरती है रेतीले गठानों पर निरावेग
जब
उमड़ती हुई घटाओं के अन्तराल में गूँजता है
लहराते मोरों का एकर्लगान
मन की उमंग में थिरक उठती है वह
नन्हीं बूँदों की ताल पर।

उसकी छवियों में उभर आता है
भीगी हुई धरती का उर्वर आवेग
वह आँधी की तरह घुल जाती है
मेह के चौतरफा विस्तार में

मेरी स्मृतियों के आकाश में
देर तक रहता है उसके होने का आभास
मुझे सहेज कर जीना है
उसकी ऊर्जा को अनवरत।