भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रसायन / नीलेश रघुवंशी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 16 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी |संग्रह=अंतिम पंक्ति में / नीलेश र…)
मैं डाकिया बन जाना चाहती हूँ
सुख और दुख को अपने झोले में भरकर
हर घर की चौखट पर सुख को धर देना चाहती हूँ
फिर क्या
दुख को अपने थैले में रखे रहना चाहती हूँ ?
नहीं, ऐसा नहीं करना चाहिए मुझे
दुख से ही निकलेगा सुख उस चौखट का
जो सुख की अँगड़ाई में अकड़ रही है
दुख उसके पाँव फैला देंगे और
सुख लपककर बैठ जाएगा दुख की गोद में
तब दुख और सुख मिलकर पैदा करेंगे एक रसायन
ऐसा रसायन जो
बनाएगा जीवन को धारदार और पैना
बुधवार, 29 दिसंबर 2004