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एक पहाड़ को बहुत देर देखकर / हेमन्त शेष
अनिल जनविजय
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एक पहाड़ को बहुत देर देख कर
हम पहाड़ हो सकते हैं
किन्तु
कविताओं में बहुत-सी बातें मिथ्या भी हैं