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ज़िंदगी का आटा / रतन सिंह ढिल्लों
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किस जन्म के
किस क़िस्म के
कर्म का फल है
यह ज़िंदगी
न पिछले का पता है
न ही अगले का पता है
ज़िंदगी का आटा
सदा रहता है मथता
और मौत के चूल्हे पर
गरम रहता है
तवा सदा ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला