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उदास चारपाइयाँ / रतन सिंह ढिल्लों
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जब कभी भी अजनबी चेहरा
गाँव से गुजरता था
फतह बुलाता<ref>अभिवादन करना</ref> था
लस्सी-पानी पीता था
साँस लेता था
और आगे चला जाता था ।
आज भी अजनबी चेहरे
गाँव से ग़ुजरते हैं
ज़ोर-ज़बरदस्ती दान माँगते हैं
और ख़ून पीकर चले जाते हैं ।
पीपल-बोहड़ के नीचे रखी मंजियाँ<ref>चारपाइयाँ</ref>
बहुत उदास हैं
इन पर बैठने वालों ने
घर के मंजों पर<ref>पलंगों पर</ref> ही कब्जा कर लिया है ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला
शब्दार्थ
<references/>