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विरह-प्रसंग (1-25 दोहे) / श्याम लाल शर्मा

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1.
पीड़ा मन की कत कहूँ, सबद न सूझे कोय ।
प्रीतम सुधि महँ मन दुखी, चुपके-चुपके रोय ।।

2.
तबहिं ते बौरई भई, जब ते बिछुरे मीत ।
झूठे सब लागन लगे, धरम करम अरु प्रीत ।।
 
3.
आग लगी कैसी मन हिं, नाहीं बुझत बुझाय ।
बुझत मिलत हि साँईं के, जौं या मन मर जाय ।।

4.
विरहा बिषधर तन डसै, डंक रह्यो नित मार ।
पिय सुधि संजीवन जड़ी, या बिष को उपचार ।।
 
5.
जब-जब पिय की सुध जगै, बिसरौं निज को भान ।
नहिं सुधि भूख-पियास की, नहिं सुख-दुख को ग्यान ।।

6.
अखियन जल झर-झर बहे, देखत पिय की बाट ।
पिस रहि आस-निरास की, चकिया बिच द्वै पाट ।।
 
7.
विरह पीड़ मन महँ बसी, पल-पल रहि तड़पाय ।
वेद-वैद हारे सभै, पिया मिलन ते जाय ।।
 
8.
मन पपिहा पी-पी करै, हरदम रहै उदास ।
ना जाने कब बुझैगी, पिया मिलन की प्यास ।।
 
9.
पिया कृष्ण मन राधिका, कृष्ण-कृष्ण कहि जाय ।
विरह आग महँ जल रह्यो, मिलन हि नीर बुझाय ।।
 
10.
नैनन नित नीरन झरैं, मन महँ नाहीं चैन ।
एक तिहारी चाह महँ, राह तकूं दिन-रैन ।।

11.
मैं अनुभव जानी कहूं, कैसी बिछुरन पीर ।
निसि-वासर नैनन झरैं, तन मन रहें अधीर ।।
 
12.
प्रियतम-प्रियतम कह रही, नयन बह रही धार ।
जग के ताने सह रही, ऐसी विरह पुकार ।।
 
13.
जीवित ही मरने चली, करने आतम दाह ।
पिया मिलन जब ना भयो, फिर का जीवन चाह ।।
 
14.
साजन बिनु सब सुख सखी, जिया जलावे मोर ।
मिलन होय विध सो बता, मैं बलि जाऊँ तोर ।।
 
15.
रैन बिताये ना बिते, पल-पल रहि तड़पाय ।
साजन मम हिदरय बसो, तबहिं चैन मन पाय ।।
 
16.
नयन तरस तव दरस को, झर-झर झरते नीर ।
मन तड़पत तव मिलन को, हरपल रहे अधीर ।।
 
17.
पिय बिन जिय नाहीं लगै, पल-पल लागै भार ।
दिवस-रैन बेचैन रह, पिय पथ रही निहार ।।
 
18.
हर छन पिय-पिय कह रही, मिलन लिये मन आस ।
प्रेमभाव महँ बह रही, सुख-दुख नाहीं पास ।।
 
19.
चंचल मन चातक नयन, विकल रहें दिन-रैन ।
जब-जब पिय की सुध जगै, तब-तब पावैं चैन ।।

20.
चँदा महीं पिय को लखै, रखै मिलन करि आस ।
विकल नैन आकुल मना, ऐसो विरहा त्रास ।।
 
21.
विरहित बैठी सखिन महिं, रहि-रहि यहि कहि जाय ।
सखि सावन रित बित रही, मोर पिय नहीं आय ।।
 
22.
लिखते पाती सजन को, नैनन जल भर आय ।
टप-टप आँसू मसि मिलै, विरहा छबि दरसाय ।।
 
23.
पाती भेजूँ प्यार की, पिया-पिया लिख जाऊँ ।
बूझनहार बूझेगा, कैसे रैन बिताऊँ ।।
 
24.
विरह व्यथा विरहि बूझे, कैसा करुण कलेस ।
भनक देत वह भामिनी, जाको पिय परदेस ।।
 
25.
आध रात वय बित चली, पिया मिलै नहिं मोय ।
जोबन भी अब बित चला, तबहिं रही मैं रोय ।।