विरह-प्रसंग (26-45 दोहे) / श्याम लाल शर्मा
26.
पिया मिलन हित हे सखी, जिया मचलता जाय ।
तिया चरित ऐसो बता, जो पिय को मन भाय ।।
27.
तुम कब आओगे पिया, बीती जाय बहार ।
या मानुस की देह महँ, जोबन के दिन चार ।।
28.
मेघ झरै सावन बरै, सब कै मन उल्लास ।
हौं बिरहन तड़पत रही, पिया मिलन करि आस ।।
29.
बरखा रित प्रीतम मिलै, यही लगी मन आस ।
साजन देरी ना करो, आन बुझाओ प्यास ।।
30.
धन सावन की बदरिया, बरस-बरस जो रोय ।
या पावै पिय आपुनो, या आपुन को खोय ।।
31.
बिलहारी ता सिसिर ते, जो पिय याद दिलाय ।
रैन-दिवस पिय याद महिं, तन मन पिय-पिय गाय ।।
32.
विषय भोग चाहूँ नहीं, नहिं चाहूँ धनमान ।
इक तिहारे दरस लई, रहता मन बेराम ।।
33.
दूर देस मम पिय बसें, याद रही तड़पाय ।
को ऐसो साधन करूँ, जो पिय दौरे आय ।।
34.
बाधा विपदा से भरी, सखी प्रीत की राह ।
पर पल भर मन नहिं हटै, ऐसी लागी चाह ।।
35.
मैं दरसन प्यासी सखी, और नही कछु लोभ ।
जीवन जब उनका कियो, फिर झूठो सब क्षोभ ।।
36.
दीनता देखी मेरी, दया दिखावें लोग ।
भोगन की चरचा करें, पहिचाने नहिं रोग ।।
37.
प्रभु जी दुनियां तोड़ती, जुड़ते मन के तार ।
आप भरम आपै रही, करत हमें बेज़ार ।।
38.
पुनिम चाँद साजन भयो, मम चित भयो चकोर ।
चित नित देखे चाँद को, नहिं चाहत कछु होर ।।
39.
पिय तुम सहिरदयी बड़े, कहते सारे लोग ।
तो क्यों अपने स्याम को, दियो बिछोड़ा रोग ।।
40.
साँची प्रीति पतंग की, करै दीप सँग प्यार ।
प्रान तजै पन ना तजै, सबै अंग दे जार ।।
41.
मेरे सखा सहोदरा, मेरे मन के मीत ।
हौं तड़पत तव मिलन को, आन दिखाओ प्रीत ।।
42.
हरि दरसन को लालसा, बीत रहे दिन-रैन ।
सकल पदारथ तुच्छ लगें, पल भर नाहीं चैन ।।
43.
छोड़े ते छूटत नहीं, सखि पनघट की राह ।
लोग कहें हौं बावरी, नहिं बूझैं यहि चाह ।।
44.
जुग तू बिछुड़े साजना, कबहुँ मिलोगे आय ।
याद तिहारी स्याम को, दिवस-रैन तड़पाय ।।
45.
विरहा की पीड़ा भली, भलो विरह को भेस ।
जामें प्रीतम सुधि रहे, रहे मिलन सुख सेस ।।