भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुल्फ़ी तुम बरसाओ ना ! / मोहम्मद साजिद ख़ान
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 19 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद साजिद ख़ान }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> बादल बाबा ओले ? न…)
बादल बाबा
ओले ? न न
कुल्फ़ी तुम बरसाओ ना !
पिस्ता, काजू, अखरोट की
और मलाई वाली,
ठण्डी-मीठी, शहद- सरीखी
मनभावन, मतवाली ।
नहीं ज़रा-सी
ख़ूब ढेर-सी
चुपके हमें खिलाओ ना !
पापा से जो पैसे माँगो
लेते सदा उबासी,
मम्मी कहतीं, ठण्डा खाने
से आएगी खाँसी ।
दादी खीजें
दादा चीख़ें
तुम तो प्यार जताओ ना !
मन की आज मुरादें पूरी
कर दो बादल बाबा,
सदा बड़ों के आगे अपनी
इच्छाओं को दाबा ।
छत ख़ाली है
आँगन ख़ाली
तुम इसको भर जाओ ना !