भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे ही प्रतिरूप पेड़ पर / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:51, 20 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=खुली आँखें खुले डैने / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे ही
प्रतिरूप पेड़ पर
उड़कर आई, बैठी,
चंचल दृग नेहातुर चिड़िया-
बया नाम की-
सस्वर बोली अपने मुँह से
मेरी कविता
मुग्ध पत्तियाँ झूमीं,
धूप धवल मुसकाई,
प्रकृति
मनोरम
मुझको भाई।

रचनाकाल: ०२-११-१९९१