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सब हैं व्यस्त / केदारनाथ अग्रवाल

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सब हैं व्यस्त
संकट-ग्रस्त
सब तरह से पीड़ित त्रस्त
फुरसत किसे है अब कहाँ
पास आए
बैठे यहाँ
कहे अपनी, सुने मेरी
खुश हो
और खुश बनाए।

रचनाकाल: १७-०९-१९९१