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मेरे ही प्रतिरूप पेड़ पर / केदारनाथ अग्रवाल

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मेरे ही
प्रतिरूप पेड़ पर
उड़कर आई, बैठी,
चंचल दृग नेहातुर चिड़िया-
बया नाम की-
सस्वर बोली अपने मुँह से
मेरी कविता
मुग्ध पत्तियाँ झूमीं,
धूप धवल मुसकाई,
प्रकृति
मनोरम
मुझको भाई।

रचनाकाल: ०२-११-१९९१