भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिजली बनी / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 21 जनवरी 2011 का अवतरण ("बिजली बनी / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिजली बनी
काँच की चूड़ी,
चम-चम चमकी
चढ़ी कलाई-
खन-खन खनकी,
काम-कुंड में डूबी।

यही
पहेली
अनबूझी थी-
मैंने बूझी-
मुझको
अच्छी
सूझी

रचनाकाल: ३१-१२-१९९१