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पयस्विनी (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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छोड़ तुझे छिपी आज, पृथ्वी, तम-गर्भ में, उठ रे नादान-हृदय ।
पोंछ क्षीण लोचन जल, आज तू अकेला, तज रे जीवन भय ।
छोड़ कम्प दीन-हरिण, सिंह के नखों में, डाल शीश अपना,
भस्म हे नगण्य लोक, प्रलयंकर रूद्र की पूरी कर वासना ।