भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहला तुषारपात / बरीस पास्तेरनाक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 24 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बरीस पास्तेरनाक |संग्रह=कविताएँ पास्तरनाक की / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाहर चरखी चला रहा था बर्फ़ानी तूफ़ान
और अब उसने छिपा दिया एक कफ़न के नीचे संसार को ।
बर्फ़ के नीचे ढक गई है ’पेपर-गर्ल’,
उसके ’पेपर’ और उसकी दुकान वाली गुमटी ।

बहुत अक्सर हमारे अनुभवों ने
हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचाया है
कि बर्फ़ गिरती है चुप्पी साध-साध कर
छल-प्रपंच के लिए ।

बिना किसी पश्चाताप के
बर्फ़ से ढँक कर सँवारते हुए
कितनी बार प्रायः लाया है वह
तुम्हें घर शहर से रात में ।

जबकि हिम-पटलों से दूरियाँ
हो रही थीं ओझल और अस्पष्ट
टटोल रही थी रास्ता एक मदमत्त छायाकृति
लड़खड़ाती हुई दरवाज़े के पास ।

और तब उसने जल्दी से प्रवेश किया ।
मैं जानता हूँ निश्चित रूप से
फिर कोई पाप छिपाना चाहता था अपना
इस तुषार पात में ।


अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह