भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुलाई मास / बरीस पास्तेरनाक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 24 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बरीस पास्तेरनाक |संग्रह=कविताएँ पास्तरनाक की / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मकान में जैसे चारों तरफ़ घूम रहा है कोई प्रेत ।
सबसे ऊपर वाली मंज़िल पर पत्ते चबा रही है कोई छायाकृति ।
बार-बार दुष्टता करने पर तुला हुआ
कोई पिशाच घूम रहा है घर में ।

वह होने लगता है घरवालों की तरह उधम मचाते हुए ।
छत पर उसकी पदचाप सुन सकते हैं ।
वह टेबुल पर चादर को उधिया देता है
और लगता है चप्पल पहनकर शयन-कक्ष में चला गया हो ।

वह आँधी के झोंके पर
घुड़मुड़ियाते हुए गंदे पाँव दौड़कर हॉल में चला जाता है
परदे को नचा जाता है नर्त्तकी की तरह
छत की ओर, दीवार पर ।
दुष्टता करने वाला यह निर्लज्ज कौन है ?
एक वहम तो नहीं ? कोई बहुरूपिया है क्या?
ओ, ये हमारे अतिथि हैं, ग्रीष्मकालीन हमारे मेहमान
छुट्टियाँ बिताने जो आए हैं हमारे साथ ।

हमारे घर को जैसे भाड़े पर ले लिया हो
विश्राम भोगने के हेतु
हमारा अल्पकालीन मेहमान है
वातास और वज्रघोष वाला जुलाई मास ।

अपनी जेब से उड़ा रहा है
बगूलों की फुज्जी घटाटोप ।
अंदर आती है जो खिड़की से होकर
बकवास करती हुई ज़ोर-ज़ोर से ।

वह है जुलाई मास- बिन सँवरे, मैला कुचैला अनवधान
मधुरिका और राई की गंध से सिक्त ।
कुसुमित जंभीर वाला जुलाई मास ।
घासों और चुकन्दर के पत्तों वाला जुलाई मास ।
शाद्वल की सुरभि से मह-मह करता जुलाई मास ।


अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह