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बुगचौ / आईदान सिंह भाटी

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मां राखती बुरचै नै,
घणै जतन सूं।
उण मांय हा उणरा वै गाभा,
जिका नानी रै हाथां रा सीड़िजियोड़ा हा।
बुगचै मांय,
दूजी ई घणी तीजां ही।
मां जोवती अर,
परस, पळट’र
पाछा राख देवती जतन सूं।
संभाळ संभाळ’र देखती,
वा आंगळियां सूं।
म्है जोवता हा,
मां री आंगळियां बिच्चै
रळकती वां चीजां नै टुगर टुगर।
बुगचौ रैयौ व्हैला कदैई रंग-रंगीलौ
मां री इंछावा री गळाई।
हवळै-हवळै इण रा रंग
मगसा पड़ताग्या
अर मगसी पड़तीगी मां री
इंछावां।
 
लुगाई री ईंछावां ईज तौ व्है सपना।
छोटी छोटी चावनावां।
ज्यूं चिड़कलियां चुगै दाणां
मां ई चुगती मगसै रंगा मायं सूं
चटक रंग रा दाणां।
वदळाव बुगचै नै
औरूं घणौ कर दियौ मगसौ
उघड़ती ही उणरी सींवणा
पण फूठरी – सांतरी संदूकड़ियां रै
मां कदैई नीं लगायौ हाथ
नीं कीनी हर कदैई पेटी री
भलांई कितरी ई फूठरी लागती दुनिया नै।
बुगचौ कोरौ नीं हौ कापड़ौ
उण रै मांय ही मां री –
पीहर री ‘बाखळ’
बाळपणै रा हंसणा-रूसणा
साथणियां रा सपना –
‘भोळै खरगोसियै ज्यूं
फुदक फुदक कूदता
सेवण घास मायं लुकता
कुदड़का भरता।’
 
जदई मां नै चुगणा व्हैता दाणां
ओळूं रा
वा खोल’र बुगचौ
जोवती आंगळियां सूं पंपोळ’र
‘दो जोड़ी गाभा’
‘काजळ रौ कूंपळौ’
‘चांदी रौ हथफूल’
अर ‘तीन जोड़ी बींटियां।’
वा भूलजावती उण बगत –
“ढोळै पडिओड़ी गोरकी गाय
पांणी अर पळींडौ
ऊतरता घर रा लेवड़ा
अर काळ री झाळ।”
रमजावती वा ओळूं रै आंगणियै।
बुगचै रा रंग कैड़ा दीसता
कोई उण बगत पूछतौ मां नै।