भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभ्यता-1 / अरुण देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 26 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |संग्रह=क्या तो समय / अरुण देव }} {{KKCatKavita}} <poem>…)
स्त्री के बालों से डरती है सभ्यता
उसकी हँसी से
उसकी देह की बनावट से
उसके होने भर से थरथराने लगती है
सभ्यता का अर्थात
स्त्री की पीठ है ज़ख़्मों से अँटी