बारात पार्टी / बरीस पास्तेरनाक
आँगन के छोर पार कर
बारात के मेहमान
दुल्हन के घर तक आ गए
सुबह तक ख़ूब खाने-पीने के लिए ।
मकान मालिक के
रूखे ऊनी वस्त्र से सज्जित द्वार के पीछे से
टूट-टूट कर आने वाले गप-सराके
डूब गए निस्तब्धता में ।
लेकिन भोर की वेला में फिर,
जब कोई सोना चाह सकता था देर तक,
'अकॉर्डियन' गान छेड़ देता है
विदाई लेने विवाहोत्सव वाले घर से ।
फिर कलाकार छितराने लगते हैं
तालियाँ बजने लगती हैं हर तोड़ पर ।
कलाइयों के मोती कौंध उठते हैं
सारा समाज बदल जाता है एक शोरगुल में ।
बार-बार आते हैं
उत्सवस्थल से सीधे टूट कर
नृत्य-गत के बिखराव
सोने वालों के कमरों में ।
हिमानी-सी एक नवोढ़ा
पंक्ति में मयूर-सी सरकती हुई
आती है सीटी बजाती हुई
और कँपाती हुई अधरों को ।
अपना दाहिना हाथ उठाकर
सिर हिला-हिला कर स्वीकारती हुई
वह आती है फ़र्श पर नाचती हुई
मयूर-सी।
अचानक उत्सव की ख़ुशी और शोरगुल
और 'रिंग-डाँस' की थपथपाहट
ग़ुम हो जाते हैं
जैसे डूब जाए पानी में चुभ-से कोई वस्तु ।
शोरगुल वाला आँगन जैसे लग रहा हो
बातचीत और ठहाके की जुंब में
बाज़ारू लेन-देन जैसी एक गूँज
खुलने लगती है ।
भूरे-नीले धब्बों के चक्रवात जैसा
कपोतों का एक झुँड नीड़ से उड़कर
सीमाहीन आकाश की ऊँचाई तक
वेगवंत दिखता है,
मानो किसी ने जगने पर सोचा हो उन्हें भेजने को
पीछा करने के लिए बारात-पार्टी के मेहमानों का
जीवन के ऐसे अनेक वर्षों की
शुभकामनाओं के साथ ।
और ज़िंदगी ख़ुद भी तो एक लम्हे की तरह है,
मात्र विलयन
अपनों का दूसरों में,
मानो कोई उपहार हो उन सब के लिए ।
जीवन मात्र एक विवाहोत्सव की तरह है
सड़क से वातायन होकर कक्ष में फूट पड़ने वाले
मात्र एक गीत की तरह
एक स्वप्न की मानिंद, एक भूरा-नीला कपोत जैसा ।
अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह