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गर्मी में एक पंखे की तरह / विमल कुमार
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मैं तुम्हें एक सपना देकर जा रहा हूँ
वर्षों तक यह मेरे पास रहा
मेरे तकिए के भीतर फूल की तरह
ख़ुशबू की तरह कमरे में
मेरी नींद की बेंच पर बैठा रहा
किसी से गुफ़्तगू करते हुए दिन-रात
यह सपना भी मुझे किसी ने दिया था
बचपन में एक क़िताब की तरह
मुझे याद नहीं वह कौन शख़्स था
एक छोटा सा सपना था
यह दुनिया अगर बदल जाती
तो मुझ जैसे करोड़ों लोग
साँस ले सकते थे हवा में
पर यह दुनिया आज तक नहीं बदली, अलबत्ता
थोड़ा और मुश्किल हो गई है