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गुदगुदी / अनुराग वत्स
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तुम्हारी हँसी की अलगनी पर मेरी नींद सूख रही है ।
तुम उसे दिन ढले ले आओगी कमरे में, तहा कर रखोगी सपने में ।
मैं उसे पहन कर कल काम पर जाऊँगा और मुझे दिन भर होगी गुदगुदी ।