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असूलों से बग़ावत कर रहा हूँ / मनोहर विजय
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असूलों से बग़ावत कर रहा हूँ
मुख़ालिफ से मुहब्बत कर रहा हूँ
मुझे मालूम है अंजाम फिर भी
तेरी तुझसे शिक़ायत कर रहा हूँ
मुहब्बत में शिकस्तें खाते-खाते
मैं औरों को नसीहत कर रहा हूँ
हज़ारों दाँव आते हैं मुझे भी
अभी तो मैं शराफ़त कर रहा हूँ
झुकाकर अपना सर ख़ंजर के आगे
मैं का़तिल पर इनायत कर रहा हूँ
मुझे भी आ गया जीना ‘विजय’ अब
सियासत से सियासत कर रहा हूँ