विसाल / मख़दूम मोहिउद्दीन
विसाल<ref>मिलन</ref>
धनक<ref>इन्द्रधनुष</ref> टूटकर सेज बनी
झूमर चमका
सन्नाटे चौंके
आधी रात की आँख खुली
बिरह की आँच की नीली लौ
नय<ref>बाँसुरी</ref> बनती है
लय बनती है
शहनाई जलती रोती थी
अब सर निबड़ाए
लाल पपोटे बंद किए बैठी है
नरम-गरम हाथों की मेंहदी
एक नया संगीत सुनाती
दिल के किवाड़ पर रुक कर कोई रातों में दस्तक देता था
दिल के किवाड़ पर रुककर वो दस्तक देता था
पर खुलते हैं
आँख से आँख दिलों से
दिल मिलते हैं
घूँघ्हट में झूमर छुपता है
घूँघट में मुखड़े छुपते हैं
दौलत खाँ की ड्योढ़ी के खण्डहरों में
बूढ़ा नाग रोता है
गूंगे सन्नाटे बोल उठे
घूँघट, मुखड़े, झूमर, पायल
चमक, दमक झंकार अमर है
प्यार अमर है
प्यार अमर है
प्यार क रात की आँख उमड़ आती है
और दो फूल
तनूर बदन<ref>स्वस्थ शरीर</ref>
शबनम पी कर सो जाते हैं ।