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हड्डियों का पुल है / देवेन्द्र कुमार

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हडि्डयों का पुल है
शिराओं की नदी है
इस सदी से भी अलग
कोई सदी है

आज की कविता
अंधेरे की व्यथा है
फूली है मटर लाल-लाल
पियराई सरसों के बीच से
उठे कुछ नए सवाल