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एक चिकना मौन / अज्ञेय

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एक चिकना मौन
जिस में मुखर-तपती वासनाएँ
दाह खोती
लीन होती हैं ।
  उसी में रवहीन
  तेरा
  गूँजता है छंद :
  ऋत विज्ञप्त होता है ।

एक काले घोल की-सी रात
जिस में रूप, प्रतिमा, मूर्त्तियाँ
सब पिघल जातीं
ओट पातीं
एक स्वप्नातीत, रूपातीत
पुनीत
गहरी नींद की ।
  उसी में से तू
  बढ़ा कर हाथ
  सहसा खींच लेता-
  गले मिलता है ।