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तुम नहीं सुन्दर / रामेश्वर दयाल श्रीमाली
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नहीं
तुम नही सुन्दर
सुन्दर तो है मेरी दृष्टि
लेकिन वह
बिना तुम्हारे
उपजती नहीं ।
नहीं
तुम नहीं सुन्दर
तुम तो केवल
आईना हो
फूल जैसा तो है
खिला खिला
मन मेरा ।
नहीं
तुम नहीं पद्म-गंध
यह जो बिखरी है-
सुवास है मेरे मन की
तुम तो हो फ़कत हवा
लेकिन तुम्हारे बिना
चौफेर नहीं फैलती
मेरी मधुर सुगंध !
नहीं
तुम नहीं रंगीन
रंगों से सना है मेरा मन
तुम तो हो सिर्फ़ जल
लेकिन तुमहारे बिना
रंग ठहरता ही नही ।
तुम नही सुन्दर
तुम नही पद्म-गध
तुम नही रंगीन
लेकिन तुम बिन-
रूप कहां ?
गंध कहां ?
रंग कहां ?
अनुवाद : नीरज दइया