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जाने ग़ज़ल / मख़दूम मोहिउद्दीन
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ऐ दिले नारसा<ref>जो पहुँच न सके</ref> आज इतना मचल
मस्त आँखों की झीलों मे खिलने लगे आँसुओं के कँवल
मिल गया राह मे अजनबी मोड़ पर कोई जाने ग़ज़ल
आज तो याद आएँ न दुनिया के ग़म
आज दिल खोल कर मुस्कुरा चश्मे नम<ref>भीगी आँखें</ref>
आज छिटकी है रुख़सार<ref>कपोल, गाल</ref> की चाँदनी
छट गईं बदलियाँ, खुल गए पेचो ख़म<ref>केशों के बल</ref>
कितना भारी था ये ज़िन्दगी का सफ़र
मेरी जाने ग़ज़ल
ख़्वाबे फ़र्दा<ref>आने वाले स्वप्न</ref> की दीवार की छाँव में
दो घड़ी बैठ कर
इशरते हाल<ref>वर्तमान का ऐश्वर्य</ref> की मय पिएँ
रास्ते मुन्तज़र, गुल बदामा<ref>फूलों से भरा</ref> है हर रहगुज़र
दिल की सुनसान गलियों में कुछ देर, कुछ दूर तक
आज तो साथ चल ।
शब्दार्थ
<references/>