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कहाँ फूलों के दरमियान रहे / श्याम कश्यप बेचैन
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कहाँ फूलों के दरमियान रहे
जो उसूलों के दरमियान रहे
हम तो केलों के पात जैसे थे
पर बबूलों के दरमियान रहे
काफ़िले तक पहुँच नहीं पाए
उड़ती धूलों के दरमियान रहे
फिर भी अपनी जड़ें नहीं खोईं
हम बगूलों के दरमियान रहे
साथ रहने की भूल की थी कभी
अपनी भूलों के दरमियान रहे