भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरिंदगी से न मिलती निजात है, यारो ! / श्याम कश्यप बेचैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप बेचैन }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> दरिंदगी से न मिल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरिंदगी से न मिलती निजात है, यारो !
हरेक दिन यहाँ जंगल की रात है, यारो !

खुलेगा उस पे कटोरों का कारख़ाना इक
दबा मशीन के नीचे जो हाथ है, यारो !

किसी को बूँद मयस्सर नहीं है पानी की
किसी के हौज में आबे-हयात है, यारो !

किसी के वास्ते दुनिया की हर ख़ुशी ग़म है
किसी के वास्ते ग़म ही निशात है, यारो !

सबूत ढूँढिए मत कीजिए दफ़ा क़ायम
हमारी ज़ात ही मुजरिम की ज़ात है, यारो !

यहाँ पे बात न करना वतनपरस्ती की
यहाँ पे मुल्क से बढ़ कर जमात है, यारो !