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संक्रमण काल-1 / भरत ओला

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जब मेरे दादा जी
स्वर्ग सिधारे
अर्थी के पीछे
सैंकड़ो लोग थे

बाप गुजरे
तब बिसे‘क

हो सकता है
जब मैं मरूं
चार भी न हो

तो अब
फिर से सोचना पड़ेगा
कि आदमी घटे या बढ़े