भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मरने का लौटना / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:53, 5 फ़रवरी 2011 का अवतरण
पुरानेपन की उम्र पुरानों से भी पुरानी-धुरानी हैं
फिर भी आग जो वर्तमान में नहीं है इतिहास से
चुरानी है वर्तमान को आधुनिक राख में बदलने के लिए
आधुनिक राख का मिट्टी बनना
थोड़ा-थोड़ा उसका पुराना बनना है
कुछ नई प्रजाति के बूटे फूटे हैं
वाकई शायद थोड़ा-थोड़ा पुराना हुआ मैं
थोड़ा-थोड़ा पुराना हुआ हूँ कि मरा हुआ भी काम करने लगूँ
और नयों को मुझे हर बार नये सिरे से दफ़नाने की ज़रूरत
महसूस हो
पुरानों को नयापन हमेशा चौंकाता है
जो उन्होंने तब पाया था जब वे नए-नए थे
चेहरे पर अनजानी ख़ुशी कस नया ठिकाना दमकता है
जब किसी में नया पुरानापन देखता हूँ
जो धमनियों को धौंका देता है भट्टी की तरह ।