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बिटिया मुर्मू के लिए-2 / निर्मला पुतुल
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इन सदियों का क्या है
आएँगी...जाएँगी...
क्या अब भी विश्वास करने लायक बचा है यह समय ?
तुम्हारे विश्वास की जड़े आखिर कितनी गहरी हैं
समय के द्वारा लगातार कुतरे जाने के बावजूद ?
क्या वे पाताल में गई हैं...?
जबकि तुम्हारे हिस्से में
भूख और थकान के सिवा
सिवा एक बेहतर ज़िन्दगी की उम्मीद के
शायद कुछ भी नहीं है...
विडम्बना ही है-
कि ईश्वर पर सबसे ज़्यादा कैसे करती हो विश्वास....?