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निज नै नाप ! / बी. एल. माली ’अशांत’

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सबदां रै साथ धोखो
खुद रै साथै धोखाधड़ी
समाज री पीठ पर घाव
ठंडी छांव बैठ’र
कद तांई करसी म्हारा बेली
कद तांई करसी !
थारै सिरजण मांय भरी है कळाबाज्यां
सबदां मांय भरियो है बिस
थारी भूख चरगी है थारी विकसित बुध
रचना कीकर बणैला अगनबीज
थूं खोखो हुयग्यो है
दमखम कोनी रैयो थारै भीतर
थूं रितो है ।
कद तांई दम भरतो रैसी म्हारा बेली
सिरजक हुवण रो ।
निज नै नाप म्हारा बेली, निज नै नाप !
थारी रचना मांय ल्हुक मेल्यो है मुनाफो
सास्वत चिंतन थारै सूं दूरै है
थारा नफा मांय चालता हाथ
कलम नै डूबो दीनी है पाणी मांय !
थूं वो लिखै म्हारा बेली
जिको लेखन नीं है !
थूं भूलग्यो है रचना धरम नै
थूं कीकर बीज सकैला क्रांतिबीज
धरती बांझड़ी कोनी
थूं सिरजक नीं है म्हारा बेली
थूं अपराधी है रचनाधर्मिता रो !
थूं समाज रो दोसी है ।
इज्जत खोसी है थूं
रचान री ! खुद री
अर साहित्य री…