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फसल / नागार्जुन

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रचनाकार: नागार्जुन


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एक के नहीं,

दो के नहीं,

ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:

एक के नहीं,

दो के नहीं,

लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्‍पर्श की गरिमा:

एक के नहीं,

दो के नहीं,

हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म:


फसल क्‍या है?

और तो कुछ नहीं है वह

नदियों के पानी का जादू है वह

हाथों के स्‍पर्श की महिमा है

भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है

रूपांतर है सूरज की किरणों का

सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!