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ओस-आकाश / प्रकाश

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जीवित आकाश का एक दूसरा नाम
झरता हुआ ओस होना था

असंख्य जीव-पुतलियों में ओस का प्रतिबिम्ब भासता
टूटकर पृथ्वी-अग्नि में
हविष्य-सा गिरकर
विलुप्त, अप्राप्य हो जाता था
उस अप्राप्य को अपनी आभा में प्राप्त कर
मैं यात्रा में एक बिछड़े अकेले
ओस-कण को मिलता था

ओस-कण के साथ भयभीत
धुँधलके में काँपता हुआ प्रार्थनारत
मैं अपनी कुटी से बाहर
समय की पगडंडी पर पग धरता था

बाहर आकाश के समक्ष
एक समय मैं मूक हो जाता था
तब मुझको बुदबुदाता था प्रतिक्षण
समस्त आकाश का ओस-शरीर !