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अर्थ बदल दूँ काश का / निर्मल शुक्ल
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सुबह-सुबह की धूप बना लूँ
भर दूँ रंग पलाश का ।
मन हिरना को हंस बना लूँ
छू लूँ पंख प्रकाश का ।
सोनी हल्दी सनी हथेली
कुमकुम की सौगंध
रह-रह कर आमंत्रित करती
नेहानुत अनुगंध
मन को पावन नीर बना लूँ
तन को हिम कैलाश का ।
कोई परिचित लहरों जैसा
लेता है आलाप
खोता, उतरता लय धुन में
स्वप्नों में चुपचाप
मन है उसको मेघ बना लूँ
अधरों के आकाश का ।
जी करता है अर्पित कर दूँ
कोरों का सब नीर
जैसे सागर के आँगन में
नदिया हारे पीर
मनभावन अनुमान बना लूँ
अर्थ बदल दूँ काश का ।