Last modified on 10 फ़रवरी 2011, at 11:36

मुर्दे / नरेश सक्सेना

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:36, 10 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मरने के बाद शुरू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मरने के बाद शुरू होता है
मुर्दों का अमर जीवन

दोस्त आएँ या दुश्मन
वे ठंडे पड़े रहते हैं

लेकिन अगर आपने देर कर दी
तो फिर
उन्हें अकडऩे से कोई नहीं रोक सकता

मज़े ही मज़े होते हैं मुर्दों के
बस इसके लिए एक बार
मरना पड़ता है ।