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निर्मल / दिनेश कुमार शुक्ल
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मैं पलाश की अग्नि
मुझे तुम मत छू लेना
रंग
लाल-नीला-पीला कैसा भी हो
रंगों की हिंसा
नहीं झेल पायेगा निर्मल रूप तुम्हारा
तुम तो आत्मा की सुगंध हो