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नित्य अर्जन / दिनेश कुमार शुक्ल
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धड़क रहीं है धीरे-धीरे
धरती के आभ्यन्तर में सब
जगहर की पहली पदचापें
स्वप्नों के झुरमुट में सोया
कलरव भी जगने वाला है
अभी ओस का अन्तिम मोती
भी टपकेगा
इसी घास पर सूरज बन कर
सरसों के समुद्र के भीतर
भरती चली जा रही है बसन्त की सरिता
रेंग-रेंग कर नमक
चने के पौदों में भर रहा लुनाई
इसी तरह माटी पानी में लोट-पोट कर
सत्य स्वयम् अर्जित करता है
अपने शाश्वत अर्थ हर सुबह
नये सिरे से......