भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
येलेना / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:25, 12 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)
रचनाकारः अनिल जनविजय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
आठों पहर
जगा रहता है
यह शहर
आतुर नदी का प्रवाह
कराहते सागर की लहर
करता है
मुझे प्रमुदित
और बरसाता है
कहर
रूप व राग की भूमि है
कलयुगी सभ्यता का महर
अज़दहा है
राजसत्ता का
कभी अमृत
तो कभी ज़हर
(2000)