भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चतुर्मास / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:13, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=आखर अरथ / दिनेश कुमार …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतनी ऊँची इस फुनगी तक
इतनी मिठास कैसे आयी
कैसे आ पायी यह सुगन्ध
कुछ हींग और कुछ चन्दन-सी
आँधी-तूफ़ानों से बचकर
इस एक अकेली अॅंबिया में
पक रहा ग्रीष्म का प्रौढ़ राग
कुछ-कुछ विषाद
कुछ-कुछ विरक्ति
कुछ भग्नाशा....
मॅंझधार पार कर आयी है
दलदल में धॅंस कर आयी है
तट की कठोरता से होकर
मिट्टी के पोर-पोर भरती
जड़ से होकर शाखाओं तक
टहनी-टहनी पत्ते-पत्ते
यह बौर-बौर बौराई है
पानी की आभा आयी है
अमरस बनकर झलमला रही
स्वर्णिम अमृत की एक बूँद....

आमों का आया चतुर्मास
संन्यासी और दलालु गृहस्थों
की कुटियों-चौपालों
में
भभक रहा है चतुर्मास
इतनी सुगन्ध इतनी मिठास!
आमों का वैभव दो दिन का
रस-रसना का यह चिद्विलास!
है रात अमावस की तो भी
पकते
आमों में
उतर रही है
सान्द्र
चन्द्र
मा की उजास !