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हम काले लोग / दिनेश कुमार शुक्ल

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पीढ़ी दर पीढ़ी
हमारी त्वचा ने
गाढ़े पसीने से कमाया है काला रंग
ताकि हम सोख सकें
अधिक से अधिक प्रकाश,
और जब भी पड़े साबका
पराजय और निराशा के अन्धकार से-
हम ख़ुद प्रकाशपुंज बनकर जगमगाएँ,
भटकने से बचें,
और अपने लोगों को
घटाटोप काली आँधियों के पार निकाल ले जाएँ

हमारी काली त्वचा ने
इतना आत्मसात् किया है सूर्य को
कि हमारे ख़ून में ही
घुल गये हैं इन्द्रधनुष के सातों रंग
सातों स्वर हमारे हृदय में धड़कते हैं
तभी तो हमीं हुए वारिस चिड़ियों के गीत और
बादल के मादल संगीत के,
अनायास ख़ुद ही लीन होती रहती हैं
हमारे काले रंग में
आसपास बहती हुई बिजलियाँ और ऊर्जाएँ
तभी तो हुए हम
दुनिया के सबसे तेज़ धावक नर्तक धनुर्धर...

हमीं है घन-घमंड के काले बादल
बिजली-पानी से लबरेज़
निःसंकोच रोते, हँसते,
गरजते, बरसते, प्रेम करते
हम पछाड़ रहे हैं एड्स को
अपने ही रक्त के रसायन से....।