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पेड़ों के लिए / उपेन्द्र कुमार

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रहते हैं पेड़
समान रूप से प्रफुल्लित
भीड़ और एकान्त में
क्योंकि सन्नाटा भी है
नाद/शून्य के अकर्म का

अस्तित्व
भौतिकता के दलदल में
विलीन होने से पहले
जिस भाषा में/देता है
अपना बयान

उसी में तो बतियाते हैं
धूप और आसमान
बरसता से/ताकि बची रहे वह

कितना अच्छा है
कम से कम बोल-चाल में ही सही
वह बची तो है

क्योंकि भविष्य में
वही आएगी काम
जब पड़ेगा भेजना हमें
पेड़ों को/निमन्त्रण-पत्र