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नेह भीगे पत्र / रमेश चंद्र पंत
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फूल जो हमने क़िताबों में
सहेजे थे-
बहुत ही याद आए
नहीं तुम पास आए !
नर्म-कोमल
दूब पर हमने लिखे जो
नेह के अक्षर
ढूँढ़ने होंगे
वही फिर गंध अब भी
घाट के पत्थर
इंद्रधनुषी स्वप्न जो हमने
सहेजे थे-
बहुत ही याद आए
नहीं तुम पास आए !
दूधिया रातें
अकेले बैठ चुपचुप
गुनगुना उठना
याद कर जैसे
कहीं-कुछ मन ही मन में
खिलखिला उठना
नेह-भीगे पत्र जो हमने
सहेजे थे-
बहुत ही याद आए
नहीं तुम पास आए !